शनिवार, 7 अक्तूबर 2023

क्रांतिकारी वीरांगना दुर्गा भाभी ने अपना अंतिम समय गाजियाबाद में गुजारा था

 




     (सुशील कुमार शर्मा, स्वतन्त्र पत्रकार) 

  गाजियाबाद। जब देश अंग्रजों के कब्जे में था तब स्वतंत्रता आन्दोलन के वरिष्ठ क्रांतिकारी भगवतीचरण वोहरा बम बनाते हुए असमय ही शहीद हो गए थे ,उस समय उनकी पत्नी दुर्गा वती (जो इतिहास में दुर्गा भाभी के नाम से प्रसिद्ध हुई) ने गोद में छोटा बच्चा होते हुए अपने पति को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए  हौसला दिखाया और क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव की हर मोर्चे पर  मदद करती रही।वह  निडर होकर अंग्रेजी सरकार की आंखों में धूल झोंकने के लिए क्रान्तिकारियों के साथ सफर करती थी तथा उन्हें हथियार पहुंचाने का काम भी वही करती थी। गाजियाबाद निवासियों को गर्व है कि ऐसी विरांगना दुर्गा भाभी 1935 में गाजियाबाद प्रवास के दौरान कन्या वैदिक इंटर कालेज में शिक्षिका भी रहीं। देश आजाद होने के बाद अपने अंतिम समय में 1983 से मृत्युपरंत 1999 तक अपने राजनगर सैक्टर- 2 स्थित आवास में रहीं। दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना उनके प्रति बहुत श्रद्धा रखते थे जब तक वह रहे उनको प्रति वर्ष एक लाख की राशि देने आते थे। गाजियाबाद के पत्रकारों की पुरातन संस्था "गाजियाबाद जर्नलिस्ट्स क्लब" ने भी देश की आजादी में अतुलनीय योगदान के लिए उनके निवास पर जाकर उनका सम्मान किया था और उनके मुख से उनके संस्मरण भी सुने थे।उसी ऐतिहासिक क्षण के कुछ चित्र भी साझा कर रहा हूं। 

उल्लेखनीय है गाजियाबाद के पार्षद राजीव शर्मा उस समय दैनिक जागरण के पत्रकार थे।जब वह पत्रकारिता छोड़ राजनीतिक जीवन में उतरे तो सबसे पहले उन्होंने स्थानीय नवयुग मार्केट के पास सिहानी गेट चौराहे पर उनकी प्रतिमा स्थापित कराई तथा उस चौराहे का नाम "दुर्गा भाभी चौराहा" कराया। प्रति वर्ष वह वहां श्रद्धांजलि समारोह भी आयोजित करते हैं। ऐसी महान वीरांगना दुर्गा भाभी को नमन है।

* दुर्गा भाभी

जन्म_7 अक्टूबर1906,शहजादपुर,कौशांबी

निधन_15 अक्टूबर 1999,गाजियाबाद

पिता_ बांके बिहारी भट्ट,कलेक्ट्रेट में नाजिर

पति_ भगवती चरण बोहरा

पुत्र_ शाचिन बोहरा,इंजीनियर,मेरठ


काम_ सांडर्स की हत्या के बाद भगत सिंह को बचा कर कलकत्ता ले जाना।


क्रांतिकारी ज्वार खत्म होने के बाद 1934 में बंबई के गवर्नर  हेली पर गोली चलाई,3 साल जेल।


1940 में अदयार,मद्रास में मेरिया मांटेसरी के संपर्क में प्रशिक्षण


1940 में ही लखनउ में 5 बच्चो को लेकर लखनऊ मांटेसरी की स्थापना।आज महत्वपूर्ण कालेज।

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* भगवती चरण बोहरा

जन्म_  15 नवंबर 1904 ,लाहौर

निधन_28 मई 1930, रावी के किनारे बम परीक्षण के समय

पिता_ शिव चरण बोहरा,रेल अधिकारी,राय साहब का खिताब

दादा_ किताबत करते थे और एक रुपए का काम करके काम बंद कर देते थे।

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    15 के बोहरा जी का विवाह 12 की दुर्गावती जी से लाहौर में हुआ।भगवती चरण बोहरा जी क्रांतिकारियों में उम्र में सबसे बड़े थे।दुर्गा जी को सभी भाभी कहते थे।वह आजीवन दुर्गा भाभी के संबोधन की हकदार हो गईं।और आज भी हैं।आखिरी दिनों में वह कहती थी_  दुख है किआज मेरा कोई देवर जिंदा नहीं है।

   17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सांडर्स की हत्या हो गई।भगवती भाई कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लेने कलकत्ता गए थे।भगत सिंह को सुरक्षित कलकत्ता पहुंचाना था।

     सुखदेव भगत सिंह को लेकर दुर्गाभाभी  के घर गए।भगत सिंह ऐसे वेष में थे कि भाभी उन्हें पहचान नहीं पाईं।योजना बनी।राजगुरु नौकर बने। बक्स सम्हाले,बच्चे शचिन को इंग्लिश जेंटिलमैन भगत सिंह गोद में लिए।दुर्गा भाभी अंग्रेजी वेष व  ऊंचे एडी की सैंडल में मेम साहिबा।

   आजाद  कमर में छिपा कर माउजर लटकाए मथुरा का पं डा बने ,हरिओम का हुंकार भरते ट्रेन में चढ़े।और कुछ दूर अपना आसन जमाया।

  तार से भगवती भाई को आने की सूचना दे दी गई थी।हावड़ा के प्लेटफार्म पर अपनी दुर्गावती को इस वेष में देख कुछ आड़ ले भगवती भाई ने उन्हें अपनी बाहों में भर कर कहा_ वाह! मैंने आज तुम्हें समझा कि सच में तुम हमारी बीबी होने के लायक हो!

  दुर्गा भाभी  और भगवती चरण बोहरा की क्रांति जोड़ी को सादर नमन!*



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