बुधवार, 18 अक्तूबर 2023

श्रीसुल्लामल रामलीला कमेटी ने सुमंत वापसी, श्री राम केवट संवाद से दशरथ मरण का मंचन किया

 


मुकेश गुप्ता सत्ता बन्धु

गाजियाबाद। श्री सुल्लामल रामलीला कमेटी ने आज प्रत्येक वर्ष की भांति राम वन गमन की लीला को डासना गेट पर मंचन किया। लीला में राजा दशरथ के दोनों वरदानों को पूरा करने के लिए पुरुषोत्तम श्रीराम माता सीता एवं लक्ष्मण के साथ वन के लिए प्रस्थान करते हैं समस्त नगरवासी रोते हैं और प्रभु राम को वन जाने से रोकने का प्रयास करते हैं लेकिन प्रभु राम अपने मुखमंडल पर हल्की सी मुस्कुराहट को लेकर नगर वासियों से विदाई लेते हैं और तपस्वी विवेक धारण करके वन की तरफ प्रस्थान करते हैं। आगे की रामघाट मन्दिर में होती है। सुमन्त विदाई की लीला के बाद प्रभु राम केवट को पुकारते हैं कि हमें नदी के पार जाना है अपनी नाव लेकर आओ। लेकिन केवट नाव नहीं लाता है और कहता है प्रभु पहले मैं आप के चरण धोऊंगा उस के बाद आप को अपनी नैया में बैठेने दूंगा। केवट प्रभु राम से कहता है कि मैंने तुम्हारा भेद जान लिया है, सभी लोग कहते हैं कि तुम्हारे पैरों की धूल से एक पत्थर सुंदर स्त्री बन गई थी। मेरी नाव तो लकड़ी की है, कहीं इस नाव पर तुम्हारे पैर पड़ते ही ये भी स्त्री बन गई तो, मैं लुट जाऊंगा। यही नाव मेरे परिवार का भरण-पोषण करती है।केवट श्रीराम से कहता है, पहले आप मुझे अपने पैर धोने दो, उसके बाद मैं नाव से तुम्हें गंगा पार करवा दूंगा। यह सब सुनकर लक्ष्मण को गुस्सा आता है लेकिन श्री राम लक्ष्मण को आंखों से ही शांत रहने का इशारा करते हैं। केवट के आग्रह को श्रीराम ने स्वीकार किया और पैर धोने के लिए तैयार हो गए। इसके बाद केवट ने श्रीराम, लक्ष्मण, सीता और निषादराज को अपनी नाव में बैठाकर गंगा नदी पार करवा दी। इस लीला के बाद श्री राम, लक्ष्मण व सीता नाव में बैठ कर रमते राम रोड बाजार में होते हुए रामलीला मैदान मंच पर पहुंचे। रामलीला मैदान में अयोध्या में जब राजा दशरथ रामचंद्र जी के वियोग से दुखी होते हैं तो दशरथ कहते हैं “कौशलये! मेरा अंतिम समय अब निकट आ चुका है, मुझे अब इन नेत्रों से कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है। राम को अब मैं कभी नहीं देख सकूगा। मेरी समस्त इंद्रियां मुझसे विदा हो रही हैं। मेरी चेतना शून्य हो रही है। इतना कहकर दशरथ जोर-जोर से राम, लक्ष्मण और सीता को पुकारने लगते हैं " और पुकारते पुकारते राजा दशरथ की वाणी थम गई और उनके प्राण पखेरु उड़ गए।

  लीला में मुख्य रूप से अध्यक्ष वीरेंद्र कुमार वीरो, उस्ताद अशोक गोयल, कार्यवाहक महामंत्री दिनेश शर्मा बब्बे, संजीव मित्तल, अनिल चौधरी, ज्ञान प्रकाश गोयल, नरेश अग्रवाल, सुधीर गोयल, सुंदर लाल, पार्षद नीरज गोयल, श्री कांत राही, नंद किशोर शर्मा, सुभाष बजरंगी, अजय गुप्ता, रविन्द्र मित्तल, अनिल गर्ग, जय वीर शर्मा आदि का विशेष सहयोग रहा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें