गुरुवार, 7 सितंबर 2023

48 दिवसीय दु:ख़हरण कल्याणमंदिर स्तोत्र विधान के समापन पर धूमधाम से निकाली गई रथयात्रा

मुकेश गुप्ता सत्ता बन्धु

गाजियाबाद। श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर कवि नगर में मुनि श्री 108 अनुकरण सागर जी महाराज के सान्निध्य में चल रहा 48 दिवसीय  दु:ख़हरण कल्याणमंदिर स्तोत्र विधान आज महायज्ञ के साथ सम्पन्न हुआ। इससे पहले प्रात: 6 बजे: श्री जी का अभिषेक एवम् शान्तिधारा, नित्य पूजन व विधान पूजन हुआ। उसके उपरांत पात्रों का बोली द्वारा चयन किया गया। यह जानकारी जैन समाज के प्रवक्ता अजय जैन ने दी। 

    अजय जैन ने आगे बताया कि श्री जी की रथयात्रा श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर कवि नगर से निकलकर कवि नगर के ए ब्लॉक, बी ब्लॉक,सी ब्लॉक,एल ब्लॉक,ई ब्लॉक,होते हुए वापस कवि नगर जैन मंदिर पहुंची जिसमें 11 बग्घी, अनेकों बैंड बाजे,  ढोल ताशे  आदि शामिल थे साथ में सैकड़ो की संख्या में जैन समाज के धर्म प्रेमी बंधु चल रहे थे।  इस अवसर पर मुनि श्री 108 अनुकरण सागर जी महाराज ने कहा की तप आराधना आत्म साधना का प्रबल कारण है बिना तप और आराधना के जीव आत्म सिद्धि को सिद्ध नहीं करता जो भी भूत में सिद्ध हुए हैं,वर्तमान में पांच विदेहों में सीमंधरराज, तीर्थंकर भगवंत कोटि-कोटि मुनीश्वर सिद्ध हो रहे हैं, भविष्य में भी जो जीव आत्मा सिद्धि को प्राप्त होंगे वे सभी व्यवहार और निश्चय तप आराधना करके ही होंगे। बिना तपस्या के संवर और निर्जला जो मोक्ष मार्ग के लिए प्रयोजन भूत हैं वह संभव नहीं है परम जिन तीर्थंकर देव ने अपनी दिव्य देशना में उद्घाटित किया है कि तप करने से संवर और निर्जला दोनों ही होते हैं। जो कर्म क्षय के लिए तपा जाता है वही मोक्ष मार्ग में प्रयोजनभूत तप है। जिनकी संसार भ्रमण की भवावलियॉं अभी बहुत हैं उनकी बुद्धि विषय कषाय की ओर ही दौड़ती हैं।व्रत तब साधना करने की भावना उनके भावों में स्वप्न में भी नहीं आएगी।स्वयं की भावना नहीं आती सो तो ठीक है परंतु विचारे कर्मों में से इतनी अधिक मारे गए हैं चारित्र मोहनीय कर्म की प्रबलता के कारण यदि दूसरे तप धारण करना चाहे तो उन्हें भी रोकते हैं। जिनका संसार अल्प है वे तप एवं तपधारकों के प्रति आस्थावान होते हैं और जिनका संसार भ्रमण अभी बहुत है  वह तपधारकों के प्रति द्वेष बुद्धि रखेंगे, यह तो वस्तु की व्यवस्था है इसमें खिन्न होने की कोई आवश्यकता नहीं है। आत्म साधना पूर्ण स्वाधीन अवस्था है अन्य क्या विचार कर रहा है यह विचार भी साधक की साधना का विघातक है स्वात्म तपस्या में तल्लीन तपस्वी के अंदर जगत का कोई विकल्प विकार उत्पन्न नहीं कर पाता। पर की निंदा व प्रशंसा उनकी आत्म साधना में कोई स्थान नहीं रखती यही जीवन के कल्याण का रास्ता है।  इस अवसर पर जम्बू प्रसाद जैन, प्रदीप जैन उपहार,अजय जैन प्रवक्ता,सुनील जैन, धर्मेंद्र जैन,प्रदीप जैन,फकीरचंद जैन, ऋषभ जैन,सुभाष जैन,विवेक जैन,राहुल जैन अजय जैन विजय जैन,तुषार कान्त आयुष जैन सूरज जैन अंचल कुमार जैन अल्का जैन पंकज जैन शीतल जैन साधना जैन, सुमन जैन,रेखा जैन, स्नेहा जैन, मधु जैन, पूनम जैन, डीके जैन आदि का विशेष सहयोग रहा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें