मंगलवार, 14 मई 2024

जड़ता को तोड़ कर ही नयापन लाया जा सकता है : अलका सिन्हा

 



                    मुकेश गुप्ता सत्ता बन्धु

सोशल मीडिया ने लेखन की गुणवत्ता को गौण कर दिया : ऋषि कुमार शर्मा 

अमित्र थियेटर में कहानी के नए प्रतिमानों की तलाश पर हुआ विमर्श 

 गाजियाबाद। कहानी के संवर्धन की दिशा में 'कथा संवाद' एक अभियान, एक आंदोलन की तरह काम कर रहा है। नवांकुरों को संवारने, तराशने की ऐसी मुहिम पूरे देश में चलनी चाहिए। कथा रंग के "कथा संवाद" में सुनी गई कहानियों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कार्यक्रम अध्यक्ष एवं सुप्रसिद्ध लेखिका डॉ. अलका सिन्हा ने कहा कि इस मंच से सुनी गई कहानियां इस बात का पुख्ता प्रमाण हैं कि रचनाकार कथानक के नए-नए कोने तलाश रहे हैं। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि व हिन्दी अकादमी के उप सचिव ऋषि कुमार शर्मा ने कहा कि सोशल मीडिया जैसे माध्यम रचनात्मकता को क्षति पहुंचाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अधिकांश लोगों को अपना लिखा साझा करने की आतुरता और प्रदर्शन की चाह ने लेखन की गुणवत्ता को गौण कर दिया है। उन्होंने कहा कि सृजन हमारे बच्चों की तरह होता है। हमें अपने लिखे को अपनी संतान की तरह ही संवारना चाहिए।

 

अमित्र थियेटर में आयोजित कथा संवाद में डॉ. सिन्हा ने कहा कि आज का पाठक समय से बहुत आगे है। लिहाजा नए रचनाकारों को इर्द-गिर्द घट रही घटनाओं पर पैनी दृष्टि रखनी होगी। जड़ता को तोड़ कर ही नयापन लाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आज सुनी गई रचनाओं में प्रेम का समावेश है। प्रेम शास्वत है। आज का प्रेम सौ साल पहले के प्रेम से अलग है। सौ साल बाद का प्रेम आज के प्रेम से अलग होगा। हर कहानी में एक यात्रा होती है और पाठक को उस यात्रा का आनंद आना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रेम कथा में लेखक नेरेटर नहीं बना रह सकता, उसे खुद ही किरदार बन कर बैठना पड़ता है। उन्होंने कहा कि ऐसी कार्यशालाओं में आलोचना का स्तर ऐसा हो कि न तो रचनाकार का कलम छूटे और न ही उसे पतंग बना दिया जाए। ऋषि कुमार शर्मा ने कहा कि ऐसी वर्कशॉप आज इसलिए आवश्यक हैं क्योंकि अधिकांश रचनाकार गुगल या सोशल मीडिया के मोहताज हो कर रह गए हैं। उन्होंने कहा कि रचनाकार को उन्मुक्त भाव से लिखना चाहिए और आलोचना से घबराना नहीं चाहिए।

डॉ. बीना शर्मा की कहानी 'सवाल', मीना पांडेय की 'जालीदार दरवाज़ों के फ्रेम', पूनम माटिया की 'विज्ञापन : नन्हे नन्हे चमकीले तारे', शिवराज सिंह की 'इकलौती', मनु लक्ष्मी मिश्रा की 'ट्रांसफर', सुधा गोयल की 'मां', रश्मि वर्मा की कहानी 'ढ़ोलकी' और टेकचंद के संभावित कथानक पर हुए विमर्श में सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार व आलोचक सुभाष चंदर ने कहा कि आज के अधिकांश रचनाकार देखे या भोगे यथार्थ को सौ फीसदी ईमानदारी के साथ परोस देते हैं। जबकि यथार्थ उतना ही परोसा जाना जो पाठक की साहित्यिक भूख को शांत कर सके। कार्यक्रम संयोजक आलोक यात्री ने कहा कि अधिकांश कहानियां वृतांत रूप में सुनाई गई हैं। जिनमें पात्रों के संवाद का लोप साफ दिखाई देता है। उन्होंने कहा कि कई विषय और कथानक ऐसे होते हैं जहां रचनाकार को परकाया प्रवेश करना पड़ता है। इन कहानियों पर डॉ. अशोक मैत्रेय, सुभाष अखिल, अवधेश श्रीवास्तव, डॉ. रखशंदा रूही मेंहदी, सुरेन्द्र सिंघल, वागीश शर्मा, मनीषा गुप्ता, अनिमेष शर्मा, विनय विक्रम सिंह, डॉ. वंदना कुंअर रायजादा, डॉ. कुलदीप कुमार पुष्पाकर, प्रदीप भट्ट व सुनित अग्निहोत्री ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर बी. एल. बतरा "अमित्र' के भक्ति यूट्यूब चैनल का लोगो भी जारी किया गया। कार्यक्रम का संचालन रिंकल शर्मा ने किया। कथा संवाद में मीना झा, डॉ. अजय गोयल, मनोज कुमार सिन्हा, डॉ. वीना मित्तल, नूतन यादव, डॉ. राजीव पांडेय, प्रेम किशोर शर्मा, सुमित्रा शर्मा, प्रताप सिंह, ओंकार सिंह, सुखबीर जैन,राधारमण, शकील अहमद सैफ, सुषमा गोयल, तिलकराज अरोड़ा, अरुण कुमार यादव, अरुण अग्रवाल, विजयलक्ष्मी, डॉ. प्रीति कौशिक, संजीव शर्मा, प्रभात चौधरी, देवव्रत चौधरी, अजय मित्तल, उत्कर्ष गर्ग, हेमलता गुप्ता, अनिल शर्मा, अभिषेक कौशिक, सिमरन व कविता सहित बड़ी संख्या में साहित्य अनुरागी उपस्थित थे।

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