मुकेश गुप्ता सत्ता बन्धु
सोशल मीडिया ने लेखन की गुणवत्ता को गौण कर दिया : ऋषि कुमार शर्मा
अमित्र थियेटर में कहानी के नए प्रतिमानों की तलाश पर हुआ विमर्श
गाजियाबाद। कहानी के संवर्धन की दिशा में 'कथा संवाद' एक अभियान, एक आंदोलन की तरह काम कर रहा है। नवांकुरों को संवारने, तराशने की ऐसी मुहिम पूरे देश में चलनी चाहिए। कथा रंग के "कथा संवाद" में सुनी गई कहानियों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कार्यक्रम अध्यक्ष एवं सुप्रसिद्ध लेखिका डॉ. अलका सिन्हा ने कहा कि इस मंच से सुनी गई कहानियां इस बात का पुख्ता प्रमाण हैं कि रचनाकार कथानक के नए-नए कोने तलाश रहे हैं। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि व हिन्दी अकादमी के उप सचिव ऋषि कुमार शर्मा ने कहा कि सोशल मीडिया जैसे माध्यम रचनात्मकता को क्षति पहुंचाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अधिकांश लोगों को अपना लिखा साझा करने की आतुरता और प्रदर्शन की चाह ने लेखन की गुणवत्ता को गौण कर दिया है। उन्होंने कहा कि सृजन हमारे बच्चों की तरह होता है। हमें अपने लिखे को अपनी संतान की तरह ही संवारना चाहिए।
अमित्र थियेटर में आयोजित कथा संवाद में डॉ. सिन्हा ने कहा कि आज का पाठक समय से बहुत आगे है। लिहाजा नए रचनाकारों को इर्द-गिर्द घट रही घटनाओं पर पैनी दृष्टि रखनी होगी। जड़ता को तोड़ कर ही नयापन लाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आज सुनी गई रचनाओं में प्रेम का समावेश है। प्रेम शास्वत है। आज का प्रेम सौ साल पहले के प्रेम से अलग है। सौ साल बाद का प्रेम आज के प्रेम से अलग होगा। हर कहानी में एक यात्रा होती है और पाठक को उस यात्रा का आनंद आना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रेम कथा में लेखक नेरेटर नहीं बना रह सकता, उसे खुद ही किरदार बन कर बैठना पड़ता है। उन्होंने कहा कि ऐसी कार्यशालाओं में आलोचना का स्तर ऐसा हो कि न तो रचनाकार का कलम छूटे और न ही उसे पतंग बना दिया जाए। ऋषि कुमार शर्मा ने कहा कि ऐसी वर्कशॉप आज इसलिए आवश्यक हैं क्योंकि अधिकांश रचनाकार गुगल या सोशल मीडिया के मोहताज हो कर रह गए हैं। उन्होंने कहा कि रचनाकार को उन्मुक्त भाव से लिखना चाहिए और आलोचना से घबराना नहीं चाहिए।
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