शनिवार, 11 मई 2024

परशुराम महेंद्र पर्वत पर विद्यमान! प्रातः स्मरण करने से मनुष्य दीर्घायु तथा निरोग रहता है!बी के शर्मा हनुमान

                   

मुकेश गुप्ता सत्ता बन्धु

गाजियाबाद श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर स्थित विश्व ब्रह्मर्षि ब्राह्मण महासभा के तत्वाधान में भगवान परशुराम प्राकट्य दिवस के शुभ अवसर पर आज विप्र बंधुओं द्वारा विश्व शांति यज्ञ और आशुतोष भगवान दूधेश्वर महादेव का जलाभिषेक किया इस अवसर पर विश्व ब्रह्मर्षि ब्राह्मण महासभा के पीठाधीश्वर ब्रह्मऋषि विभूति बीके शर्मा हनुमान ने बताया कि परशुराम त्रेता युग के एक ऋषि थे, उनका जन्म भृगुवंश में हुआ था. उनके पिता का नाम जमदग्नि तथा माता का नाम रेणुका था. महर्षि जमदग्नि द्वारा आयोजित पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न होकर देवराज इंद्र के वरदान के फलस्वरूप रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को उनका जन्म हुआ था. वे अपने माता पिता की पाँचवी संतान थे  उन्हें विष्णु के छठे अवतार आवेशा वतार के रूप में जाना जाता हैं.जन्म के पश्चात उनके पितामह ने उनका नामकरण संस्कार कर उनका नाम रामभद्र रखा. जमदग्नि का पुत्र होने के कारण उन्हें जामदग्नेय तथा भृगु वंश में जन्म लेने के कारण भार्गव नाम से जाना जाता हैं. परशुराम सदा अपने से बड़ो व माता पिता का सम्मान करते थे तथा उनकी आज्ञा का पालन करते थे तत्पश्चात उन्होंने महर्षि विश्वामित्र और महर्षि ऋचीक के आश्रम में रह कर शिक्षा प्राप्त की, उनकी योग्यता से प्रभावित होकर महर्षि ऋचिक ने उन्हें अपना सारंग नामक दिव्य धनुष तथा महर्षि कश्यप ने वैष्णवी मंत्र प्रदान किया. वे परम शिव भक्त थे, उन्होंने कैलास पर्वत कर कठोर तपस्या की तथा भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे विदुयदभि नामक परशु प्राप्त किया और वे रामभद्र से परशुराम कहलाएँ.

परशुराम नारी के सम्मान के प्रति कटिबद्ध थे. 

उन्होंने ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूया, अगस्त्य की पत्नी लोपमुद्रा के साथ नारी जागृति हेतु प्रयास किया. महाभारत काल में गंगा पुत्र भीष्म ने जब काशीराज की पुत्री अम्बा का अपहरण कर लिया था तो उसके सम्मान की रक्षा के लिए उन्होंने भीष्म से भी युद्ध किया तथा पुरुषों के लिए एक पत्नी धर्म का संदेश परशुराम परम गौ भक्त भी थे. सहस्त्र भुजाएं होने के कारण उसे सहस्त्रबाहु भी कहा जाने लगा. अपनी शक्ति के अहंकार में सहस्त्रबाहु ने ऋषि जमदग्नि के आश्रम से देवराज इंद्र द्वारा प्रदत्त कपिला कामधेनु का हरण कर लिया. परशुराम को इस घटना का पता चला तो वे अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने सहस्त्रबाहु का संहार कर कपिला कामधेनु को सम्मान के साथ वापिस आश्रम ले आए.परशुराम दानवीर भी थे. हैहयवंशीय राजाओं को परास्त कर उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया तथा सम्पूर्ण भूमि महर्षि कश्यप को दान में दे दी. इसके पश्चात उन्होंने अपने अस्त्र शस्त्र त्याग दिए और महेंद्र पर्वत पर आश्रम बनाकर तपस्या करने लगे. प्राचीन इतिहास एवं पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि संसार में सात ऐसे महापुरुष है जो चिंरजीवी है तथा सभी दिव्य शक्तियों से सम्पन्न है उनमें परशुराम भी एक हैं तथा आज भी वे महेंद्र पर्वत पर विद्यमान हैं. इनका प्रातः स्मरण करने से मनुष्य दीर्घायु तथा निरोग रहता हैं. इस शुभ अवसर उपाध्यक्ष आरसी शर्मा, संस्थापक कार्यकारी अध्यक्ष महेश कुमार शर्मा, सीमा भार्गव, राष्ट्रीय अध्यक्ष महिला शक्ति, राष्ट्रीय महासचिव महिला शक्ति, राष्ट्रीय प्रवक्ता राधेश्याम पांडे, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनीत कुमार शर्मा, कोषाध्यक्ष लोकेश कौशिक, महासचिव शैलेंद्र शर्मा, राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी विजय कौशिक, राष्ट्रीय महासचिव रघुनंदन भारद्वाज गौरव शर्मा महासचिव सुभाष शर्मा, महासचिव मनीष शर्मा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष बृजपाल शर्मा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष आलोक चंद शर्मा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष ऋषि पाल शर्मा, समाजसेवी संदीप त्यागी समाजसेवी छोटेलाल कनौजिया , उपाध्यक्ष कपिल पंडित, उपाध्यक्षसागर शर्मा,डॉ सतीश भारद्वाज, ब्राह्मण शिरोमणि संतोष कौशिक,संगठन मंत्री मनोज शर्मा, संगठन मंत्री देवेंद्र शर्मा, डॉक्टर एन एस तोमर, संगठन मंत्री शिवकुमार शर्मा समाजसेवी विनीता पाल, महिला शक्ति महानगर अध्यक्ष आशा शर्मा,  धर्मेंद्र शर्मा, प्रवीण कुमार मुकेश कुमार पीएन गुप्ता  मिलन मंडल,यज्ञ आचार्य नंदकिशोर दूधेश्वर नाथ मंदिर आदि मौजूद थे

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें