बुधवार, 25 जनवरी 2023

किसी भी राजनितिक उद्देश्य के लिए धर्म का उपयोग नहीं होना चाहिए ।” - रामचरितमानस मुद्दे पर बोले प्रो. पवन सिन्हा ‘गुरूजी’

मुकेश गुप्ता

गाजियाबाद।कुछ दिन पूर्व रामचरितमानस पर बिहार के शिक्षा मंत्री ने कुछ चौपाइयों पर सवाल उठाते हुए विवादित बयान दिया था। इसके बाद से रामचरितमानस को लेकर विवाद बढ़ता ही जा रहा है। अब समाजवादी पार्टी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस के दोहे और चौपाई पर नाराजगी जताई और कहा, 'इन दोहों में धर्म की आड़ में दलितों और पिछड़ी जाति की महिलाओं का अपमान किया गया है । इसे बैन करना चाहिए । 

इस विषय पर दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर एवं प्रसिद्द राष्ट्रवादी आध्यात्मिक संत प्रो. पवन सिन्हा ‘गुरूजी’ ने कहा कि जो चंद्रशेखर जी जैसे लोग हैं इन्हें एक भी दिन कैबिनेट में नहीं होना चाहिए । प्रोटोकॉल के तहत राज्य के मुख्यमंत्री मंत्री जी को हटा सकते हैं, अतः उन्हें तुरंत हटाया जाना चाहिए । स्वामी प्रसाद मौर्य हों या चंद्रशेखर जी, जिन्हें धर्म और धर्मशास्त्र की समझ नहीं है, जिन्होंने धर्मशास्त्र पढ़े ही नहीं हैं वो ऐसे अतार्किक व असभ्य बयान दे रहे हैं । 

रामचरितमानस सनातनियों का धार्मिक ग्रन्थ है, इसमें श्री राम जी का दर्शन है उसमें जो बातें हैं वो मनुष्य कल्याण के लिए ही हैं उसमें कहीं भी जाति व्यवस्था, वर्ण व्यवस्था की बात ही नहीं है। भगवान श्री राम ने सभी वर्ग को एक साथ लेकर चलने की बात कही है और अपने आचरण से भी यही सन्देश दिया है। आप युद्ध काण्ड और किष्किन्धा काण्ड पढ़कर देख लीजिये, आपको स्वयं ज्ञात हो जायेगा। भगवान राम कभी जन्म के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं करते। ये अवधी भाषा का ग्रन्थ हैं । वहां जो शुद्र शब्द का अर्थ है वो आज के दलित शब्द से भिन्न है ये एक मानसिक स्थिति है, ये एक अध्यययन की स्थिति है, ये वो शब्द है जिसके लिए यास्क मुनि कहते हैं कि जन्म से तो सभी शुद्र हैं तो यहाँ पर कहीं बैर है ही नहीं किसी भी वर्ग अथवा जाति में, दूसरी बात 1575 के लगभग ये रामचरितमानस लिखनी शुरू होती है और उस समय की स्थिति का अवलोकन किया गया है जैसे कोई व्यक्ति जब अपने समय का कोई साहित्य लिखता है चाहे वो राजनीति शास्त्र का साहित्य हो, हिंदी का हो या अंग्रेजी का हो, तो वेह एक भूमिका बांधता है और उस समय के समाज की स्थिति की व्याख्या देता है । गोस्वामी तुलसीदास जी भी वो बात कर रहे हैं ।

आज जब संविधान के तहत सब लोग सुरक्षित हैं तो इस प्रकार की अनर्गल चर्चा करना बहुत ग़लत संकेत हैं । ऐसे संवेदनहीन और अवैज्ञानिक ब्यान की मैं घोर निंदा करता हूँ । मन में राजनीति हो तो कुछ गलतियाँ जानबूझकर भी की जाति हैं । राजनीति ध्रुवीकरण से ही चलती है, भारत जैसे बहुजातीय समाज में राजनीति के लिए कुछ लोग एक विशेष योजना बनाते हैं और इस समय भाजपा के पास जो वृहद् वोट बैंक है ये उसे तोड़ने की एक कवायद है । राजनीति के आधार पर समाज को तोडने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, धर्म ग्रन्थों को टारगेट नहीं बनाना चाहिए। ये धर्मग्रन्थ बहुत पूर्व लिखे गये हैं अतः उसको इतिहास के आधार पर ही समझना चाहिए । आज के परिपेक्ष में कुछ भी उठाकर बोलना और कहना कि बैन कर दो, वो कर दो। तो फिर यह प्रश्न भी उठेगा - क्या सनातन अस्मिता कुछ भी नहीं है । हिन्दू अस्मिता कुछ भी नहीं है । सभी ग्रन्थ पूजनीय हैं, उन पर किसी भी प्रकार की ग़लत टिप्पणी असहनीय है । ये अच्छी बात नहीं है । बाकि धर्म महत्वपूर्ण हैं तो सारे ही धर्म महत्वपूर्ण हैं । किसी भी राजनितिक उद्देश्य के लिए धर्म का उपयोग नहीं होना चाहिए ।


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