स्क्रिप्ट की खूबसूरती यह रही कि जहां गांधी को आजादी दिलाने वाले महानायक के तौर पर ही रखा गया, वहीं यह भी बताने का प्रयास किया गया कि परिवार के मुखिया के तौर पर गांधी उस भूमिका को नहीं निभा पाए जिसकी अपेक्षा उनके बच्चों को थी, खासतौर पर उनके बड़े बेटे हरि को जिसका चरित्र हरीश कुमार ने बख़ूबी निभाया। हालांकि यह माना जाता है कि जो भी व्यक्ति समाज के लिए बहुत कुछ करता है, आमतौर पर उसका परिवार उपेक्षित रह जाता है लेकिन महात्मा गांधी (जिनका चरित्र राघव शर्मा ने निभाया) के बारे में इस तरह की बातें कहने के प्रयास आमतौर पर चलन में देखे नहीं जाते। लेखकों ने बड़ी ही विनम्रता के साथ गांधी के पारिवारिक जीवन की तरफ उस छोटी सी खिड़की को भी खोला जहां से कुछ कड़वे सत्य दिखाई देते हैं। नाटक को सफल बनाने में Flying Monks Acting Studio के मंझे हुए कलाकारों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी जिनमें वत्सला खेड़ा, राघव शर्मा, शिख़ा मल्हौत्रा, फ़रदीन ख़ान,हरिश कुमार,साकेत उपाध्याय और चेतन पांडेय शामिल थे।
नाटक की दूसरी विशेषता ये रही कि गांधी जी की पत्नी कस्तूरबा (जिनका चरित्र वत्सला खेड़ा ने निभाया) को उस तरह से सामने रखा गया जिस तरह से आमतौर पर रखा नहीं जाता। गांधी नाम ही इतना बड़ा है कि उनके आसपास के पात्र छोटे लगते हैं लेकिन नाटक में कस्तूरबा के किरदार को खूब उभार कर दिखाया गया। कार्यक्रम में प्रदेश के पूर्व मंत्री बागेश्वर त्यागी, वरिष्ठ भाजपा नेता पृथ्वी सिंह कसाना, यशोदा हॉस्पिटल के निदेशक डा० दिनेश अरोड़ा ने सभी कलाकारों का स्वागत किया और उन्हें सम्मानित किया। मंच का संचालन वरिष्ठ पत्रकार राज कौशिक जी ने किया
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