सत्ता बन्धु
श्रीमद् भागवत कथा ज्ञानयज्ञ
*💥कथावाचक देवी चित्रलेखा जी के श्रीमुख से प्रवाहित हो रही ज्ञान गंगा*
*🌺परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज का पावन सान्निध्य, आशीर्वाद और उद्बोधन*
*💐जांगिड सेवा संघ, मुम्बई द्वारा आयोजित*
ऋषिकेश, 9 दिसम्बर। मां गंगा और भगवान शिव की पावन धरती ऋषिकेश में श्रीमद् भागवत कथा की ज्ञानधारा कथावाचक देवी चित्रलेख जी के श्रीमुख से प्रवाहित हो रही है। आज के पावन अवसर पर श्रोताओं को परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी का पावन सान्निध्य, आशीर्वाद और उद्बोधन प्राप्त हुआ। उनके श्रीमुख से श्रद्धा, भक्ति और ज्ञान की दिव्य धारा प्रवाहित हुई, जिसने श्रद्धालुओं के हृदयों को गहराई तक स्पर्श किया। श्रोताओं को जीवन, मूल्य और अध्यात्म पर नए सिरे से चिंतन करने की प्रेरणा प्राप्त हुई
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि देवी चित्रलेखा जी की कथा शैली में सरलता है, उनकी वाणी में गहराई और प्रभाव है, हर शब्द मन की परतों को खोल देता है। भागवत के प्रसंग चाहे भगवान कृष्ण की बाल लीलाएँ हों, मीरा बाई की भक्ति हो, सुदामा की निष्ठा हो या प्रह्लाद का विश्वास हो, हर प्रसंग जीवन के सत्य को उजागर करता है।
स्वामी जी ने अपने भावपूर्ण संदेश में कहा कि श्रीमद् भागवत केवल एक आध्यात्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह जीवन का संपूर्ण दर्शन है जो हमें प्रेम, करुणा, संयम और सेवा का मार्ग दिखाता है। भागवत कथा हमें भीतर सत्य की ज्योति जागृत करने का संदेश देती है। जब मन पवित्र होता है, तब कर्म भी उज्ज्वल होते हैं और जीवन स्वयं एक ‘भागवत’ बन जाता है।
स्वामी जी ने आज के समय में बढ़ते तनाव, हिंसा, पर्यावरण संकट और सामाजिक विभाजन का उल्लेख करते हुए कहा कि इन चुनौतियों का समाधान केवल बाहरी प्रयासों से नहीं, बल्कि आंतरिक जागृति से ही संभव है। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण जी का प्रेम, उनकी लीला, उनकी करुणा और उनका धैर्य आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने महाभारत काल में थे।
स्वामी जी ने कहा कि यदि हम अपने जीवन में सत्य, सेवा और सत्संग को स्थान दें, तो परिवार सुधरेगा, समाज सुधरेगा और राष्ट्र भी उन्नत होगा।
देवी चित्रलेखा के भजनों में ऐसी मिठास और भक्ति है कि मन स्वयं ही भगवान की ओर उन्मुख हो जाता है। “राधे-राधे जपो चले आएंगे बिहारी” जैसे भजनों ने वातावरण को और भी रमणीय, अलौकिक और आध्यात्मिक बना दिया।
कथा के अंत में स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने सभी से आह्वान करते हुये कहा कि जीवन को भगवान की ओर मोड़ें। अपने विचारों में पवित्रता लाएँ, अपने कर्मों में सेवा जोड़ें और अपने हृदय में प्रेम की गंगा प्रवाहित करे, यही भागवत का संदेश और जीवन का सार है।
जांगिड सेवा संघ, मुंबई द्वारा आयोजित यह ज्ञानयज्ञ उनकी सेवा-भावना और सांस्कृतिक प्रतिबद्धता का श्रेष्ठ उदाहरण है। ऐसे आयोजनों से न केवल व्यक्तिगत जीवन समृद्ध होता है, बल्कि समाज भी एक मजबूत आध्यात्मिक नींव प्राप्त करता है। श्रीमद् भागवत कथा ज्ञानयज्ञ वास्तव में चेतना जागरण का एक दिव्य महोत्सव है।
स्वामी जी ने कथावाचक देवी चित्रलेखा जी और जांगिड सेवा संघ के पदाधिकारियों को रूद्राक्ष का पौधा भेंट कर हरित कथाओं के आयोजन का संदेश दिया।


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